9th May 2024

Nightingale of Punjab : Surinder Kaur

यादें 

 

वो मेरी माँ भी थी, गुरु भी थी सहेली भी थी – डॉली गुलेरिया

 

“Her memories are so close to my heart, her love, her style and her singing … Maa was unique. ” Well known singer Dolly Guleria shares the fond memories of her mother ,the legendary singer Surinder Kaur on her death anniversary 14th June.

“ज़ेहन में वही यादें रहती हैं जो दिल के बहुत  करीब होती हैं ,माँ  इतनी ममता लुटाती थी कि आज भी उसके प्यार की नरमी महसूस होती है , वो मेरी माँ भी थी, गुरु भी थी सहेली भी थी .उसके प्यार की इन्तहा तब पता लगी जब मैं स्टेज पर जाती तो लोग मेरी आवाज़ में माँ के गाने सुनने की फरमाइश करते ”

माँ की आवाज़ के साथ उनके अंदाज़ का गहरा असर रहा , जिसे याद करते हुए डॉली गुलेरिया  खो सी जाती हैं ,” छोटी थी तब से माँ को गाते सुनती , माँ रियाज़ करती तो मैं उन्ही के पास बैठी रहती , और उनके सभी गाने मुझे याद हो जाते , उन दिनों माँ बहुत बिजी रहती थी , कई बार गुरूजी कोई कम्पोजीशन सिखाते , उनके जाने के बाद जब रियाज़ करने बैठती तो कई बार याद नहीं आता की ये गुरूजी ने कैसे सिखाया था ,और तब मैं माँ को याद दिला देती , माँ एकदम  हैरान रह जाती कि  इसे कैसे याद हो जाता है ?”

बातचीत में यादों की रिमझिम में सराबोर लम्हों की सोंधी खुशबू फैलती जाती है ,पिता जोगेंदर सिंह सोढ़ी और माँ सुरिंदर कौर की यादों के सफे  पलटते हुए  डॉली गुलेरिया  बताती  हैं ,”पिताजी  दिल्ली  यूनिवर्पिसिटी में हेड ऑफ़ द डिपार्टमेंट थे  लेकिन उन्हें  गाने से गहरा लगाव था , वो बहुत अच्छा  गाते थे , बहुत प्यारे इंसान थे, शादी के बाद जब उन्होंने देखा कि मेरी पत्नी का रुझान पंजाबी गानों की तरफ है तो उन्होंने पंजाबी लिटरेचर में एम ए किया , माँ के जितने भी गाने मशहूर हुए वो सब पिताजी ने ही ढूंढ कर दिए थे .हमें भी गाने के लिए हमेशा एंकरेज करते , भीड़भाड़ और बंद कमरों से निकल वो हमें नदी किनारे ले जाते और कहते खुलकर जोर से गाओ .घर में पढने लिखने और गाने का माहौल रहता ,  मैं डॉक्टर बनना चाहती थी  माँ भी चाहती थी मैं  सिर्फ पढाई पर ध्यान दूं लेकिन मैं गाने से दूर नहीं  रह सकती थी, हमारे घर एक दफा के. पन्नालाल आये थे , उन्होंने शिव  कुमार बटालवी की कविता को कम्पोज़ करके माँ को गाना सिखाया ,

“गमां दी रात लम्बीए, जाँ मेरे गीत लम्बेने ,ना पैड़ी रात मुकदे हैं   ,ना मेरे गीत मुकदे हैं “( ghamon ki raat lambi hai ya mere geet lambe hain , na ye buri raat thamti hai na mere geet thamte hain)

मुझे ये गाना बहुत अच्छा  लगा, और मुझे याद हो गया, कॉलेज के कम्पीटीशन  में ये गाना जब मैंने गाया  तो फर्स्ट प्राइज मिला, जब माँ ने देखा की मैं गाने से दूर नहीं रह सकती तो वो मुझे अपने साथ ले जाने लगी, तभी मैंने जाना कि माँ से लोग कितनी मोहब्बत करते हैं, बड़े बुज़ुर्ग भी माँ को प्रणाम करके कहते की आप साक्षात् सरस्वती हो ”

डॉली गुलेरिया  बताती हैं कि गाना उन्होंने माँ और उनके गुरु  से सीखा , “उनके गुरु थे पटियाला घराने के अब्दुल रहमान खान साहब , उन्होंने पहला सबक दिया हलीमी यानी नम्रता का और सिखाया की जो रूह को सुकून दे वही गाना होता है, वाकई रूह को तसल्ली वही गाकर मिली जो माँ और गुरुओं से सीखा ”

माँ की यादों के बेशुमार रंगों को सहेजती डॉली गुलेरिया  कहती हैं ,” उन यादों का हर रंग बेहद खूबसूरत है , माँ से गाना सीखा, घर संभालना सीखा, और उनकी सीख हमेशा याद रही , वो कभी नहीं डांटती थीं बस एक लुक था , उस सख्त नज़र से जैसे ही वो देखतीं हम समझ जाते कि माँ को ये पसंद नहीं आया है ”

विरासत में मिली कला आज चौथी पीढ़ी तक पहुच चुकी हैं , डॉली गुलेरिया  की बेटी सुनयनी और उनकी नातिन रिया भी गाती हैं , सुरों की इस समृद्ध विरासत को संजोने में हमेशा उनका साथ दिया कर्नल गुल्लेरिया ने , ” वो हमेशा मुझे एंकरेज करते हैं ,मैं रियाज़ करती हूँ तो वो वहां बैठ जाते हैं और जिस दिन मैं रियाज़ नहीं कर पाती उस दिन पूछते हैं ,”आज आपने मेरा घर पवित्र नहीं किया ”

  • राजुल

 

Dolly Guleria  

 


 

 

Video made by Dilpreet Guleriya

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