भीकाजी रुस्तम कामा
‘क्रान्ति की जननी’ उपाधि से विभूषित इस महिला ने 1907 में जर्मनी के स्टूटगार्ड शहर में जहां इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस सम्मेलन का आयोजन किया गया था। सम्मेलन में मौजूद लोग अपने अपने झंडों के साथ अपने अपने देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भारत उस समय अंग्रेजी शासन के आधीन था। ऐसे समय में ब्रिटिश झंडे को नकारकर इस महिला ने स्वनिर्मित झंडा बनाया और साड़ी पहनकर भारत की ओर से ब्रिटिश धरती पर सर्वप्रथम झंडा फहराकर पहली भारतीय महिला होने का गौरव प्राप्त किया। अपने ओजस्वी भाषण में उन्होंने कहा था ‘ऐ संसार के कामरेड्स देखो, ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो।’
ये वीरांगना थी भीकाजी पटेल, जो विवाह के बाद भीकाजी रुस्तम कामा और स्वदेश प्रेम व सामाजिक कार्यों हेतु लोकप्रिय हुई मैडम कामा के नाम से। मैडम कामा द्वारा निर्मित झंडा आज के झंडे से भिन्न था। ऊपर हरे रंग की पट्टी में 8 कमल के फूल जो भारत के 8 प्रातों के प्रतीक थे, बीच में पीले रंग की पट्टी में वंदेमातरम लिखा था और नीचे नीले रंग की पट्टी में सूरज और चांद बने थे ।
भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक भीकाजी पटेल का जन्म 24 सितंबर 1861 को समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। उनका विवाह रुस्तम जी कामा के साथ हुआ, जो पेशेवर एक वकील थे और अंग्रेजी शासन के बेहद समर्थक थेे। रुस्तम जी और मैडम कामा दोनों ही समाज सुधारक थे बावजूद इसके दोनों एक दूसरे के विचारों से असहमत थे।
मैडम कामा एक राष्ट्रवादी विचारों व सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे हर हाल मे भारत को अंग्रेजी शासन से आजाद कराने के पक्ष में थी। राष्ट्र के प्रति उनका प्रेम निश्चल था। उन्हें विश्वास था कि ब्रिटिश शासन भारत के साथ छल कर रहे हैं। वे भारत की स्वतंत्रता के लिए सदैव चिन्तित रहती थीं। यही वजह थी कि उन्होंने स्वदेश प्रेम और सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में सर्वजन हित को ध्यान में रखते हुए अनेक कार्य किये।1896 में बम्बई में भयंकर फैली बीमारी प्लेग के समय में उन्होंने स्वयं नर्स बनकर लोगों की सेवा श्रुषा की। लोगों की सेवा करते करते वे स्वयं भी इस बीमारी का शिकार हो गयी। बेहतर इलाज के लिए उन्हें यूरोप जाना पड़ा।
1902 में लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा, वीर सावरकर, लाला हरदयाल और श्रेष्ठ समाज सेवक दादा भाई नैरोजी जैसे महान विभूतियों से उनकी मुलाकात हुई। उनसे मिलकर और उनकी बातों से वे इतनी प्रभावित हुई कि अपने स्वस्थ होने का ख्याल छोड़कर वे क्रान्तिकारियों के साथ भारत की आजादी के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन बनाने के कार्य में संलग्न हो गई।
लंदन में ही वे दादा भाई नैरोजी जैसे महान विद्वान के समपर्क में आई और निजी सचिव बनकर उनके साथ मैडम कामा ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य को संपादित किया। इससे उनको बहुत फायदा हुआ। काम के दौरान उन्हें दुनिया के अलग अलग जगहोें पर जाने, भारतीयों से मुलाकात करने और उनमें राष्ट्र प्रेम के बारे में बातचीत करने का अवसर मिला।
इसी बीच साल 1906 में लार्ड कर्जन की हत्या के बाद मैडम कामा 1906 में पेरिस आ गई। अपने क्रान्तिकारी लेख ‘पेरिस इंडियन सोसाइटी’ और क्रान्तिकारी मैगजीन वंदेमातरम में छपे उनके क्रान्तिकारी विचारों से लोग बेहद प्रभावित हुए। कहा जाता है कि उनके इस क्रान्तिकारी विचारों से बिटिश शासन भी बहुत भयभीत हो गई थी और उन्होंने फ्रांसीसी सरकार से उन्हें प्रत्यर्पण करने का आग्रह किया था परंतु वहां की सरकार ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद बिटेन और फ्रांस का विलय होने के बाद उन्हें फ्रांस छोड़ना पड़ा। उनका मानना था भारत आजाद होना चाहिए, भारत एक गणतंत्र होना चाहिए, भारत में एकता होनी चाहिए’। इसी भावना के साथ 1909 में पेरिस में ही उन्हांेने होमरुल लीग की स्थापना की। वे भारत लौटना चाहती थीं परंतु उन्हें राष्ट्रवादी काम छोड़ने की शर्त पर भारत आने की अनुमति मिली।
साल 1935 में वे भारत आईं परंतु भारत आकर वे साल भर ही यहां रह सकी और अस्वस्थता के कारण 13 अप्रैल 1936 को उनका देहान्त हो गया।
ऐसी महान राष्ट नायिका को हमारा शत शत नमन।
- बबिता बसाक
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