8th September 2024

मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है – संगीतकार ख़य्याम

मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है – संगीतकार ख़य्याम

जाने अनजाने की शृंखला में बातें एक ऐसे कलाकार की, जिन्होंने पंजाब की मिट्टी में जन्म लिया, फिल्मों में नायक बनने की इच्छा लिये दिल्ली पहुंचकर संगीत की शिक्षा दीक्षा ली, लाहौर जाकर संगीत की बारीकियों को सीखा तो कभी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा की, गायक बनकर अपनी आवाज से लोगों का दिल बहलाया कभी नायक बनकर सिनेमा के पर्दे पर नजर आये। कभी शर्माजी वर्माजी की जोड़ी रचकर बतौर संगीतकार अपना करियर प्रारंभ किया, परंतु ख्याति पाई अपनी नायाब धुनों को रचकर एक विख्यात संगीतकार के रुप में और हिन्दी चलचित्र जगत पर छा गये मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी उर्फ सुप्रसिद्ध संगीतकार खय्याम के नाम से।

कभी कभी, त्रिशुल, नूरी, रज़ि़या सुल्तान, नाख़ुदा, दिल-ए-नादान, थोड़ी सी बेवफाई, आहिस्ता आहिस्ता, उमराव जान व बाज़़ार जैसी अनगिनत फिल्मों में नायाब संगीत देने वाले खय्याम साहब के संगीत की विविधता ही उन्हें अन्य संगीतकारों से अलग रखती है।

पंजाब की मिट्टी में जन्में व पले बड़े होने के कारण हमें उनके संगीत में शास्त्रीय संगीत की विविधता, ठाठ पंजाबी लोक धुनें, गीतों में पहाड़ी व यमन रागों के साथ सुर, लय व ताल का संुदर प्रयोग देखने व सुनने को मिलता है, जो संगीतप्रेमियों को स्वतः ही अपनी ओर खींचता है।

बचपन से ही खय्याम साहब गायक व नायक के एल सहगल और गायिका बेगम अख्तर के प्रशंसक थे। फिल्में देखने का इन्हें बेहद शौक था। घर से भाग भागकर फिल्में देखने जाते थे। कभी संगीतकार बनेगें सोचा नहीं था क्योंकि उनके मन में एक ही सपना था के0 एल0 सहगल जैसा नायक बनने का। फिर क्या था ? मात्र 10 साल की उम्र में अपने सपने को साकार करने के लिए वे घर से भागकर दिल्ली आ पहुंचे अपने चाचा के घर।

दिल्ली में स्कूली शिक्षा के साथ साथ इनकी संगीत की शिक्षा प्रारंभ हुई। पंडित अमरनाथ और हुस्नलाल भगत राम जैसे गुनी शिक्षाविद्ों के सान्निध्य में लगभग 5 साल तक उन्होंने संगीत सीखा। शिक्षा पूरी करने के बाद वे वापस पंजाब आये, इसी बीच लाहौर जाकर जी0 एस0 चिश्ती के सहायक बनकर संगीत की बारीकियों को भी सीखने का मौका मिला खय्याम साहब को।
घर वालों से कुछ अनबन होने के कारण नाराज़ होकर कुछ समय के लिए उन्होंने फौज में नौकरी भी की। साल 1943 से 1945 तक सेना में नौकरी के बाद वे वापस मुम्बई आये और चिश्ती साहब से दोबारा मुलाकात की। खयाम साहब नियमित रुप से उनके पास जाते और विभिन्न प्रकार के वाद्यों को बजाकर उनसे संगीत के अलग अलग धुनों को सीखा करते।
इधर चिश्ती साहब के सहायक बनकर वे काम तो कर रहे थे परंतु वे खय्याम साहब को कोई मेहनताना नहीं मिलता था। ऐसे ही एक बार बी0 आर0 चोपडा साहब चिश्ती साहब से मिलने आये। वहां उन्होंने खय्याम साहब को अलग अलग धुनें बजाते हुए देखा। तब उन्होंने चिश्ती साहब से कहा, आप इसको मेहनताना क्यों नहीं देते? फिर क्या था चोपड़ा साहब के कहने पर खय्याम साहब को 125 /- प्रति माह वेतन मिलने लगा।


बतौर संगीतकार खयाम साहब ने सबसे पहले शर्माजी-वर्माजी के नाम से 1948 की पंजाब प्रोडक्शन की फिल्म हीर रांझा में संगीत दिया और इस जोड़ी में शर्मा जी कौन थे जानते हैं ? जी हां, खयाम साहब। परंतु विभाजन के बाद रहमान वर्मा साहब पाकिस्तान चले गये और रह गये शर्माजी।

साल 1953 की फिल्म फुटपाथ में उन्होंने स्वतंत्र रुप से संगीत दिया। फिल्म में तलत महमूद गाया शामें गम की कसम गीत बेहद मकबूल हुआ उस समय और इसी फिल्म ही से ही शर्मा जी से बन गये संगीतकार खय्याम। हालांकि इससे पहले साल 1947 में फिल्म रोमियो एंड ज्यूलिएट में बतौर गायक उन्होंने जोहराबाई अम्बालेवाली के साथ गीत भी गाया था और बाद की कई फिल्मों में उन्होंने गीता दत्त और मीना कपूर के साथ भी कई गीत गाये। साल 1948 में एस0 डी0 नारंग की फिल्म ये है जिन्दगी में अभिनय भी किया परंतु यह इनकी पहली व आखिरी फिल्म थी ।

फिल्म फुटपाथ के बाद 50 व 60 के दशक में उनकी अन्य संगीतबद्ध फिल्में थीं बीबी, प्यार की बातें, फिर सुबह होगी, शोला और शबनम, शगुन, आखिरी ख़त आदि। इन फिल्मों में भी उनके संगीत को सराहा गया। परंतु लोकप्रियता मिली 70 व 80 के दशक की फिल्मों से जब उन्होंने कभी कभी, नूरी, त्रिशूल, दर्द, दिल-ए-नादान, नाखुदा, सवाल खानदान, बेपनाह, थोड़ी सी बेवफाई, उमराव जान, बाज़ार जैसी अनगिनत फिल्मों में अपना अविस्मरणीय संगीत रचा।

उनके संगीत में जिन मशहूर शायरों व गीतकारों का योगदान रहा उनमें सर्वप्रमुख थे साहिर लुधियानवी जी इसके अतिरिक्त जानिसार अख्तर, कैफी आजमी, मजरुह सुल्तानपुरी, निदा फाज़ली, शहरयार नक्श लायलपुरी, अहमद वसी व सरदार जाफरी जैसी उच्चकोटि के शायरों की कलम से निकले गीतों व गज़लों को संगीतप्रेमियों ने दिल से स्वीकारा ।
लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, तलत महमूद, आशा भोसलें के साथ साथ किशोर कुमार, यसुदास, कब्बन मिर्जा, सुरेश वाडेकर, सुमन कल्याणपुर, जगजीत कौर, अनवर, सुलक्षणा पंडित व तलत अज़ीज जैसे गायक गायिकाओं ने उनके संगीतबद्ध गीतों को गाकर उन्हें बुलन्दियों पर पहुंचाया।

अपनी नायाब संगीत के लिए उन्हें 1977 में फिल्म कभी कभी और 1982 में फिल्म उमराव जान के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार, 1982 में ही उमराव के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, 2007 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2010 में लाइफ टाइफ अचीवमेंट अवार्ड, 2011 में पद्म भूषण और 2018 में हदय नाथ मंगेशकर पुरस्कार से भी नवाजा गया। साथ ही फिल्म नूरी, थोड़ी सी बेवफाई और रज़िया सुल्तान के संगीत के लिये वे नामांकित भी हुए।
बेगम अख्तर की गज़लें और मशहूर नायिका मीना कुमारी की गज़़ल संग्रह ‘आई राइट आई रिसाइट’, इन गैर फिल्मी अलबमों को संगीतबद्ध किया था खय्याम साहब की मीठी धुनों ने।

18 फरवरी 1927 को पंजाब के नवांशहर जिले के राहों शहर में जन्में खय्याम साहब ने साल 2019 की तारीख 19 अगस्त को अंतिम सांसें लीं और जाते जाते छोड़ गये अपनी सुमधुर धुनों की अनोमल विरासत अपने चाहने वालों के लिए।
बुला रहा क्या कोई चिलमनों के उस तरफ
मेरे लिए भी क्या कोई उदास बेकरार है…..

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  • बबिता बसाक

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