अभिनेत्री विद्या सिन्हा
(15 नवम्बर 1947 – 15 अगस्त 2019)
ना जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ, अचानक ये मन, किसी के जाने के बाद, करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात ,ना जानें क्यों ?
बीते बरस, आज ही के दिन हिन्दी सिनेमा की एक लोकप्रिय अदाकारा ने फिल्मी जगत को अलविदा कहा। जी हां, साल 2019 का वो दुःखद दिन था 15 अगस्त। वाईटइंक इंटरटेनमेंट की जाने अनजाने शृंखला में आज हम भी याद कर रहे हैं इस अदाकारा को।
70 के दशक की ये खूबसूरत अदाकारा थी विद्या सिन्हा। विद्या सिन्हा, जिनकी फिल्मों की सूची भले की लंबी न हो परंतु अपने सहज, सरल व सादगी पूर्ण अभिनय से वे दर्शकों का दिल जीतने में पूरी तरह से कामयाब रहीं।
प्रिंटेट साड़ी, माथे पर छोटी सी बिंदी, ढीली ढाली इकहरी चोटी और होठों पर हल्की सी मीठी मुस्कान यही तो थी इस अदाकारा की मुख्य पहचान।
मुम्बई में जन्मी व पली बढ़ी विद्या सिन्हा ने किसी एक्टिंग स्कूल से प्रशिक्षण नहीं लिया था। फिल्मों में आने से पहले वे मॉडलिंग को ही अपना करियर बना चुकी थीं परंतु विद्या सिन्हा फिल्मों की बेहद शौकीन थीं।
अपनी नेचुरल ब्यूटी और एक्टिंग से नाना प्रकार के उत्पादों मंे काम करके उन्होंने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इतना ही नहीं, साल 1968 में वे मिस बॉम्बे भी चुनी गई थीं।
हल्की फुल्की कॉमेडी, रोमांटिक, घरेलू व संजीदा इन अलग अलग भूमिकाओं से विद्या सिन्हा ने हिन्दी सिनेमा में अपनी एक खास जगह बनाई।
अधिकांश फिल्मों में एक भारतीय नारी के किरदार में विद्या सिन्हा पूरी तरह से सफल रहीं। फिर चाहे वो पढ़ी लिखी महिला दीपा का किरदार हो या फिर घर को संभालने वाली पत्नी और मां शारदा का।
भूमिका चाहे जो भी हो, दर्शकों ने उनकी फिल्मों के साथ-साथ उनके अभिनय को भी खूब सराहा और पसंद किया। इसकी वजह ही थी उनका नेचुरल ब्यूटी और सरल अभिनय।
70 के दशक में हिन्दी सिनेमा की टॉप हीरोईनों में से एक थी विद्या सिन्हा। 1974 से फिल्मों में कदम रखने वाली विद्या सिन्हा ने फिल्म इंडस्ट्री को एक के बाद एक कामयाब फिल्में दी।
एक ओर मन्नू भंडारी की लघु कहानी ‘ये सच है’ पर आधारित फिल्म रजनीगंधा, छोटी सी बात, मेरा जीवन, जीवन मुक्त, मुक्ति, कर्म, किताब, अतिथि, जीना यहां, पति पत्नी और वो, तुम्हारे लिए, मगरुर, मीरा, स्वयंवर, सबूत व जोश जैसी कामयाब फिल्में हिन्दी सिनेमा को दी, तो दूसरी ओर अकीरा कुरोसावा की जैपनिस फिल्म हाई एंड लो का हिन्दी रिमेक ‘इंकार’ और बांग्ला फिल्म छुटीर फांदे का हिन्दी रिमेक ‘सफेद झूठ’ भी उनकी कामयाब फिल्मों में शुमार हैं।
1974 में आई ‘रजनीगंधा’ विद्या सिन्हा की पहली हिट फिल्म थी यद्यपि उनकी पहली रिलीज फिल्म थी राजा काका साल था 1974, जिसमें उनके साथ थे अभिनेता किरण कुमार। इसी फिल्म में अभिनेता प्रेमनाथ ने अंजान साहब के लिखे और कल्याण जी आनंद जी द्वारा स्वरबद्ध गीत भी गाया था डगर चलत देखो।
विद्या सिन्हा के फिल्मों की सफलता का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष था उनकी फिल्मों का संगीत। गीतों की सफलता में योगदान रहा सलिल चौधरी, आर0 डी0 बर्मन, रविन्द्र जैन, जयदेव, राजेश रोशन, भप्पी लाहिरी व श्यामल मित्रा जैसे लोकप्रिय संगीतकारों का। फिल्म रजनीगंधा का शीर्षक गीत, फिल्म छोटी सी बात का जाने मन जाने मन, तुम्हारे लिए की तुम्हें देखती हूं, फिल्म पति पत्नी और वो का लडकी साइकिल वाली और गाना आये या ना आये, कर्म का समय तू धीरे धीरे चल, किताब का धन्नो की आंखों में, आ आ इ ई, इंकार का मोंगरा, मुक्ति का सुहानी चांदनी रातें या फिर ललला ललला लोरी जैसे गीतों को उस दौर के संगीतप्रेमियों ने ही खूब पसंद किया।
70 के दशक में बासु चटर्जी, सुरेश जिन्दल, कमल सहगल, राज एन0 सिप्पी, रामू सिप्पी, गुलजार, राज तिलक, प्राण लाल मेहता और बी0 आर0 चोपडा जैसे सुप्रसिद्ध निर्माता-निर्देशकों की फिल्मों में अमोल पालेकर जैसे उस समय के उभरते हुए नायक के अलावा संजीव कुमार, शशि कपूर, विनोद खन्ना, उत्तम कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद मेहरा और सुपर स्टार राजेश खन्ना जैसे उस दौर के लोकप्रिय नायकों की नायिका बनकर पर्दे पर छा गई थी विद्या सिन्हा।
सदैव सकारात्मक भूमिकाओं को अदा करने वाली विद्या ने ने राज एन0 सिप्पी की 1981 में फिल्म जोश में नकारात्मक भूमिका भी निभाई थी।
बहुत कम सिनेमा प्रेमी ये जानते है कि विद्या सिंहा ने सत्यजीत राय की 1962 की फिल्म कंचनजंघा में एक छोटी सी भूमिका भी की थी।
80 के दशक में लव स्टोरी, किरायेदार, प्यारा दुश्मन, कैदी, जीवा जैसी फिल्मों से विद्या सिन्हा चरित्र भूमिकाएं करने लगीं थीं।
साल 2011 में आई बॉडीगार्ड उनकी अंतिम फिल्म थी। जिसमें वे करीना कपूर की मां बनी थीं फिल्म में ये मां बॉडीगार्ड सलमान खान को बात बात पर डांटती रहती हैं। इस हास्य भूमिका में भी वे खूब सराही गई।
सिनेमा के बड़े पर्दे के अलावा टेलीविजन के छोटे पर्दे पर उन्होंने साल 2005 में काव्यांजलि, 2006 में ज़़ारा, 2011 में नीम नीम शहद शहद, 2012 में हार जीत और कुबूल है, 2015 में इश्क का रंग सफेद, 2016 में चंद्र नन्दिनी और साल 2018 में कुल्फी कुमार बाजेवाला जैसी धारावाहिकों में काम किया। विभिन्न धारावाहिकों में उनके द्वारा निभाये गये चरित्र भूमिकाओं में भी उन्हें दर्शकों का भरपूर प्यार मिला।
साल 1947, 15 नवम्बर को मुंबई में जन्मी अभिनेत्री विद्या सिन्हा भले ही आज हमारे बीच नहीं है, परंतु सिनेमा प्रेमी जब भी विद्या सिन्हा अभिनीत फिल्मों को देखेगें या उन पर फिल्माये गये गीतों को सुनेंगें, वे यही कहेंगे ‘‘तुम्हें देखती हूं तो लगता है ऐसे, कि जैसे युगों से तुम्हें जानती हूं ’’।
– बबिता बसाक
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