संगीतकार व गायक अनिल बिस्वास
(31 मई – स्मृृति दिवस पर विशेष)
प्राचीन संगीतकारों में संगीतकार अनिल बिस्वास एक ऐसे संगीतकार हुए, जिन्होंने अपने समय में अपने सुरीले व मधुर धुनों से गीतों को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया और इसकी प्रमुख वजह थी उनकी रचना में शास्त्रीय धुनों का भरपूर प्रयोग।
आज की पीढ़़ी के समक्ष इस संगीतकार का नाम भले ही अनसुना हों लेकिन कविवर प्रदीप द्वारा रचित और अनिल बिस्वास द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘दूर हटो ए दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है’ इस गीत की अगर चर्चा की जाय तो इस गीत से वे अनभिज्ञ नहीं होगें, यह हमारा पूर्ण विश्वास है।
कुाल तबला वादक के पुत्र थे अनिल बिस्वास। संगीत का माहौल चूंकि घर पर ही था तो भला अनिल बिस्वास संगीत से पीछे कैसे रहते। परंतु संगीतकार बनने से पूर्व वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे।
संगीत की अगर बात की जाय तो जब वे मात्र 5 साल के थे उनके पिता ने अपने पुत्र की संगीत प्रतिभा को पहचान लिया था। फिर क्या था घर पर पिता और उस समय के लोकप्रिय शिक्षकों से उन्होंने संगीत की तालिम हासिल की।
1930 में वे कलकत्ता आ गये, जहां उनकी मुलाकात हुई मशहूर बांग्ला शायर काजी नजरुल हसन से। उनसे मिलने के बाद अनिल बिस्वास उनके साथ जुड़ गये रंगमहल थियेटर से। काम के दौरान क्या आप जानते हैं उस समय उन्हें कितने रुपये मिलते थे जी हां 5/- रु0 प्रतिमाह।
3 साल तक इस थियेटर से जुड़कर उनके साथ रंगमंच के लिए कार्य करते रहे और साथ ही यामा संगीत और कीर्तन में भी वे पूरी तरह से प्रवीण हो गये।
परंतु संगीत के प्रति अपनी अटूट रुचि को अनिल बिस्वास संगीत के माध्यम से उंची बुलन्दियों और जन-जन तक पहुंचाना चाहते थे। और इसके लिए उन्हें कलकत्ता छोडकर आना पड़ा माया नगरी बम्बई।
इस माया नगरी में आकर किस्मत वालों को ही आते ही मंजिल मिल जाती है लेकिन वो कहते हैं ना, व्यक्ति कितना भी गुणी व प्रतिभावान क्यों न हों, बम्बई में यदि असफलता का स्वाद नहीं चखा तो उसे सफलता नहीं मिलती?
1934 में अनिल बिस्वास बम्बई आये यहां आकर प्रारंभ में उन्होंने भी संर्घा किये परंतु एक साल के बाद 1935 में उन्होंने फिल्म धर्म की देवी में संगीत देने का मौका मिला, इस फिल्म में उन्होंने छोटी भी भूमिका भी अदा की थी। परंतु सफलता अभी बहुत दूर थी।
इस फिल्म के बाद 1937 में फिल्म जागीरदार में उन्होंने पुनः संगीत दिया और इस बार उनके संगीत का जादू श्रोताओं के दिल को छू गया और वे अपने संगीत द्वारा संगीतप्रेमियों के दिलों में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयेे।
फिल्मों में संगीत देने के साथ साथ अब वे महबूब स्टूडियो से भी जुड़़ गये थे जहां उन्हें वेतन मिलता था 250/- रु0 प्रतिमाह।
अनिल बिस्वास ने जिन फिल्मों में अपना संगीत दिया वे चर्चित फिल्में थीं – परदेसी, आराम, किस्मत, बेगुनाह, लाजवाह, फरेब, लाडली व हमदर्द आदि। फिल्म किस्मत का गीत दूर हटो ए दुनिया वालों इस गीत ने तो उस समय 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय नवयुवकों में नवीन जोा व अद्म्य साहस परिपूर्ण करने में अहम भूमिका निभाई थी कहा जाता है ये फिल्म बम्बई के एक सिनेमाघर में लगातार 3 साल तक चली थी।
साल 1943 में अनिल बिस्वास जुड गये बॉम्बे टॉकीज से जहां उनकी मुलाकात हुई अभिनेत्री देबिका रानी सें। बाम्बे टॉकिज के लिए उन्होंने सबसे पहले जिस फिल्म में उन्होंने संगीत दिया वो फिल्म थी हमारी बात, यह देबिका रानी की भी पहली फिल्म थी।
इस फिल्म के सभी गीतों को अपनी आवाज दी थी स्वयं अनिल विवास और उनकी बहन और माहूर तबला वादक पन्नालाल घोा की पत्नी पारुल घोा ने। पारुल घोा के गाये इस फिल्म के सभी गीत बेहद लोकप्रिय हुए और अनिल विवास लोकप्रिय संगीतकार के साथ साथ गायक के रुप में भी लोकप्रिय हो गए।
संगीत निर्देशक के रुप में अनिल बिस्वास के साथ उस जमाने के माहूर गीतकार प्रेम धवन व साहिर लुधियानवी ने काम किया जिन्हें संगीत प्रेमियों ने खूब पसंद किया इस प्रकार इन ाायरों के कलम से निकले गीतों को बुलन्दियों तक पहुंचाया अनिल बिवास के कर्णप्रिय संगीत ध्ुाुनों ने। फिल्म दो राहा में तेरा ख्याह दिल से मिटाया नहीं और फिल्म परदेाी में ए दिल मुझे व सीने में सुलगते हैं अरमान जैसे गीत और गीतों की धुनें आज भी अमर हैं।
अनिल बिस्वास के संगीत निर्देशन में गायक मुकेा व तलत महमूद ने अपनी गायन यात्रा प्रारंभ की। मुकेा का गाया फिल्म पहली नजर (1945) का दिल जलता है तो जलने दे और फिल्म आरजू (1950) में तलत साहब का गाया ए दिल मुझे ऐसी जगह ले गीत की सफलता में अनिल विवास के संगीत का ही कमाल था। इन दोनों गीतों के गायन के बाद दोनों ही गायकों ने कभी भी असफलता का स्वाद नहीं चखा।
कहा जाता है कि संगीत में नये नये प्रयोग व नई नई तकनीक का प्रारंभ इन सबकी देन भी संगीतकार अनिल बिस्वास की है। अनिल बिस्वास दिल्ली आकाशवाणी में 1963 से 1975 तक चीफ प्रोड्यूसर पद पर भी शोभायमान रहे। इसके अतिरिक्त 1953 में वे सह निर्माता भी बने। 1984 में दूरर्दान के राट्रीय नेटवर्क पर प्रसारित लोकप्रिय धारावाहिक हमलोग का संगीत भी इस महान संगीतकार ने ही दिया था।
7 जुलाई, 1914 में बरिसाल, बंगाल (उस समय के बांग्लादेा) गंाव में जन्में अनिल दा का वास्तविक नाम था अनिल कृण बिस्वास। साल 2003 तारीख 31 मई, नई दिल्ली में इस महान संगीतकार ने इस अथाह संसार को अलविदा कहा।
इस महान गायक व संगीतकार की संगीत यात्रा को हमारा शत शत नमन।
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बबिता बसाक
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